Thursday, August 28, 2008

परिवर्तन के लिए छात्र

जैसा कि सर्वविदित है कि डूसू चुनावों की उद्धोषणा हो चुकी है और इसके लिए आप आने वाली 5 सितम्बर को अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले है। आप अपने बहुमूल्य मताधिकार का प्रयोग करें, इसके पूर्व आपको प्रमुख छात्र संगठनों की पिछले एक वर्ष की गतिविधियों का मूल्यांकन अवश्य करना चाहिए। हम मूल्यांकन की दृष्टि से कुछ तथ्य आपके सामने रखने जा रहे हैं जिन पर दृष्टिपात करने के पश्चात् आप अपना निर्णय सहजता से ले सकेंगे।

  • गत दिनों पूरे देश भर में अनेक घटनाएं-दुर्घटनाएं घटीं, जिस पर डूसू चुनावों में चारों सीटों पर जीत दर्ज करनेवाली एन.एस.यू.आई. बड़ी बेशर्मी से चुप रही।
  • कमरतोड़ महंगाई, आतंकवाद, सांसदों की खरीद-फरोख्त तथा विश्वविद्यालय में हुई गड़बड़ियों पर एन.एस.यू.आई. के प्रतिनिधि मौन धारण किए रहे।
  • हॉस्टलों के आवंटन में पक्षपात, एम.फिल. और पीएच.डी. की छात्रवृत्तियां रोकने, इतिहास की पुस्तकों में हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां करने के मुद्दे पर डूसू के चारों पदाधिकारियों ने बोलना जरूरी नहीं समझा।
  • एन.एस.यू.आई. के प्रतिनिधियों का यह आचरण नया नहीं है। पिछले वर्ष भी एन.एस.यू.आई. के प्रतिनिधि जीतने के बाद छात्रों की समस्याएं सुलझाने की बजाय अपने स्वार्थ पूरे करने में लगे रहे। इनकी नाकामियों और नाकारापन से ऊबकर साऊथ कैंपस में इनके विरूध्द अविश्वास प्र्रस्ताव भी पारित किया गया था।

छात्रों की समस्याएं यथावत् है-

  • डी.टी.सी. के पासों को ब्लू-लाइन में मान्यता नहीं दी जा रही है।
  • छात्रों को मेट्रो में रियायती पास नहीं मिल पाया है, जिस कारण दूर-दराज से आनेवाले छात्रों को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
  • हॉस्टलों का आवंटन अपने कृपापात्रों को मनमाने तरीके से कर सही हकदारों को वंचित रखा जाता है, जिस कारण छात्र-छात्राओं को निजी आवासों में पेईंग गेस्ट के नाते रहने के दौरान काफी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है।
  • निजी शिक्षण संस्थाओं में मनमाने तरीके से फीस वृध्दि के कारण शिक्षा गरीब छात्रों की पहुंच से बाहर होती जा रही है।
  • छात्रों की इन समस्याओं के विरूध्द एन.एस.यू.आई. द्वारा आवाज नहीं उठाना, छात्रों के प्रति इनकी गैर जिम्मेदारी को दर्शाता है।
  • दूसरी ओर विद्यार्थी परिषद् आपके साथ हमेशा रही है और आम छात्रों से जुड़े मुद्दों को लेकर विद्यार्थी परिषद ने हमेशा संघर्ष किया है।
  • जिन सारे मुद्दों को उठा पाने में एन.एस.यू.आई. नाकाम रही, वे विद्यार्थी परिषद की कार्यसूची में सबसे ऊपर है।
  • भारतीय संस्कृति के अपमानजनक लेखन के विरूध्द विद्यार्थी परिषद ने आवाज उठाई, जिसके लिए विद्यार्थी परिषद के कई कार्यकर्ता जेल भी गए।
  • निजी मकान मालिकों व प्रापर्टी डीलरों की मनमानी के विरूध्द भी विद्यार्थी परिषद ने जून में प्रदर्शन किया और उन्हें चेतावनी दी।
  • हॉस्टल आवंटन में घपले के खिलाफ भी विद्यार्थी परिषद ने संघर्ष किया है और विश्वविद्यालय प्रशासन पर दवाब डाला है।
  • दिल्ली विश्वविद्यालय भारत का प्रमुख विश्वविद्यालय है और यहां का शैक्षणिक स्तर भी काफी ऊंचा है। यहां का माहौल भी स्तरीय है। इसलिए यहां के छात्र प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे देश में घट रही घटनाओं और जनहित से जुड़े मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।
  • महंगाई ने आज आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। देश के विभिन्न भागों में आतंकवादी घटनाओं में सैकड़ों लोग मारे गए। केन्द्र सरकार की घुटनाटेक नीति के कारण आज देशद्रोही और अलगाववादी देश पर हावी होते जा रहे हैं, जिसके चलते श्रीअमरनाथ श्राईन बोर्ड को आवंटित भूमि सरकार द्वारा रद्द किया गया। ऐसे सैकड़ों मुद्दों के खिलाफ आवाज उठाना तो दूर एन.एस.यू.आई. ने इस सब के लिए निंदा करना भी जरूरी नहीं समझा।
  • सच तो यह है कि जीत हासिल करने के बाद एन.एस.यू.आई. के प्रतिनिधियों ने छात्र-हितों के साथ हमेशा दगा किया है। छात्रों की जायज मांगों को उठाने के बजाय ये लोग अपने निजी स्वार्थ साधने में लग जाते हैं। पैसा, पैरवी और चापलूसी से एन.एस.यू.आई. का टिकट पाकर इन लोगों ने डूसू चुनाव को निगम पार्षद और विधायक बनने का प्लेटफार्म बना दिया है। इस गंदगी से विश्वविद्यालय परिसर को मुक्त करने की जरूरत है। इसलिए आइए, हम सब मिलकर उसे चुनें जो छात्रों के मुद्दे निर्भीकता और निस्वार्थ भाव से उठा सके।

इस परिर्वन के अभियान में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र सहभागी बनें।

डूसू छात्रों की समस्याएं उठाने और उनका समाधान निकालने का एक सशक्त माध्यम है। आइए, हम सब मिलकर इसको और सशक्त बनाएं.............

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