
हम किसी दबाव में नहीं है, मुझे न केवल खुद पर विश्वास है बल्कि छात्रों के बीच विद्यार्थी परिषद् की सकारात्मक छवि के अलावा परमात्मा पर भी पूरा भरोसा है कि सफलता मुझे जरूर मिलेगी। छात्र जब यह कहते हैं कि `वी वान्ट चेंज´ तो हौंसला बढ़ जाता है। यह कहना है अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की ओर से डूसू चुनाव में सचिव पद की प्रत्याशी `अनुप्रिया यादव´ का। प्रस्तुत हैं उमाशंकर मिश्र द्वारा उनसे की गई बातचीत के प्रमुख अंश-
अनुप्रिया को छात्र हितों के वकालत की सीख विरासत में मिली है। उनके पिता श्री बलराम यादव सन् 1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के उपाध्यक्ष और फिर सन् 1984 में अध्यक्ष पद पर रहे हैं। खुद अनुप्रिया भी छात्र राजनीति में पिता को आदर्श मानती हैं। सच ही तो है कि इतिहास आज खुद को दोहरा रहा है और बेटी आज उसी पायदान पर खड़ी है जहां वर्षों पहले पिता खड़े थे। वर्षों पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं और वही विश्वास अनुप्रिया के चेहरे पर भी देखने को मिलता जिसके बूते 80 के दशक में पिता बलराम यादव ने दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों का समर्थन लगातार दो वर्षों तक प्राप्त कर छात्रसंघ चुनाव में जीत हासिल की थी। बाद में बलराम यादव छात्रसंघ में भले ही ना रहे हों लेकिन उनका लगाव हमेशा विद्यार्थी परिषद के साथ बना रहा। अनुप्रिया का बचपन इसी तरह की गतिविधियों के बीच बीत रहा था और वहीं से उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बारे में जानकारी मिली। वे बताती हैं कि ``नौवीं कक्षा में आने तक तो मैंने ये फैसला कर लिया था कि मैं डूसू से सम्बद्ध कॉलेज में ही दाखिला लूंगी और पापा की तरह छात्रों के बीच रहकर करने का मन भी बना लिया था। जब ये बात मैंने पिताजी को बताई तो उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया था। लेकिन आज जब वे मुझे इस मुकाम पर जंग तैयारी में जुटे देखते हैं तो जी भर कर आशीष देते हैं और उनके प्रोत्साहन से उत्साह दोगुना हो जाता है।´´
शर्मीले स्वभाव की अनुप्रिया बात करते हुए पहले तो थोड़ा सकुचाती हैं, लेकिन फिर सहज होते हुए वे छात्र हितों से जुड़े मुद्दों की बात करती हैं, छात्राओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय को काम्पैक्ट कैम्पस बनाना उनकी प्राथमिकताओं में से एक है। छात्राओं के साथ होने वाली ज्यादती को वे करीब से महसूस करती हैं और कहती हैं कि ``आज किसी एक आम छात्रा के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है तो कल मेरे साथ भी हो सकता है। छात्राओं का दर्द मेरा अपना दर्द है। इसलिए उनकी समस्याओं का निदान करना मेरी प्राथमिकताओं में से सबसे ऊपर है, क्योंकि मेरा मानना है कि असुरक्षा का भय छात्रों की पढ़ाई पर भी असर डालता है। यदि छात्र विश्वविद्यालय परिसर में होने वाले दुर्व्यवहार के भय से ग्रसित होगा तो पूरी क्षमता के साथ पढ़ाई बिल्कुल नहीं की जा सकती।´´
हम विभिन्न कॉलेजों में भिन्न-भिन्न फीस का ढांचा और शिक्षा के व्यापारीकरण के विरोध में भी संघर्ष करेंगे, क्योंकि विद्यार्थी परिषद् का मानना है कि शिक्षा तो चैरिटी का विषय है, इसे व्यवसाय की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए इसके लिए केन्द्रीय कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।
बात पढ़ाई की चली है तो संसाधनों को कैसे भुलाया जा सकता है। अनुप्रिया बेहतर शैक्षिक संसाधनों के विश्वविद्यालय में ना होने को लेकर भी पूर्व छात्रसंघ को आड़े हाथों लेते हुए कहती हैं कि ``कई कॉलेजों में तो लाइब्रेरी और सेनीटेशन जैसी बेसिक सुविधाओं का भी अभाव है, जबकि एयरकंडिशंड ऑफिस में बैठे पिछले डूसू अधिकारियों ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। एनएसयूआई ने पिछले चुनाव से पहले 5 हॉस्टल बनाने की बात करके प्रवासी छात्रों को बरगलाया था, लेकिन 5 ईंट भी उनके कार्यकाल में नहीं लगाई गई हैं। इससे छात्रों के साथ उनकी वादाखिलाफी ज़ाहिर हो जाती है। बकौल अनुप्रिया( हम विश्वविद्यालय में न केवल शैक्षिक संसाधनों की बेहतरी को लेकर प्रतिबद्ध हैं, बल्कि खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए भी व्यापक कदम उठाने का फैसला किया है। जिससे आज हम ओलंपिक में जो सिर्फ एक गोल्ड मेडल लेकर आएं हैं, उसे भविष्य में बढ़ाया जा सके। प्रवासी छात्रों को हॉस्टल में जगह मिले और कॉलेजों में दाखिला( इसके लिए हॉस्टलों की संख्या के साथ नए कॉलेजों के निर्माण की पहल भी हम करेंगे। अनुप्रिया कहती हैं कि मेट्रो रेल में छात्रों के लिए रियायती पास बनवाना, यू-स्पेशल बसों की संख्या बढ़ाना, आंतरिक मूल्यांकन की खामियों को दूर करने के लिए भी विद्यार्थी परिषद् आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। आगे वे कहती हैं कि ``अभी तक आंतरिक मूल्यांकन में बड़े पैमाने पर छात्र हितों के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा है। यह सही नहीं है। इसलिए छात्रसंघ में आने के बाद आंतरिक मूल्यांकन में पारदर्शिता लाने की हम भरसक कोशिश करेंगे। इसके अलावा हम विभिन्न कॉलेजों में भिन्न-भिन्न फीस का ढांचा और शिक्षा के व्यापारीकरण के विरोध में भी संघर्ष करेंगे, क्योंकि विद्यार्थी परिषद् का मानना है कि शिक्षा तो चैरिटी का विषय है, इसे व्यवसाय की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए इसके लिए केन्द्रीय कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।
जब प्रचार पर अनुप्रिया निकलती हैं तो छात्र उनकी सौम्यता के कायल होकर विश्वास के वोट उन्हें अर्पित करने को सहर्ष तैयार हो जाते हैं। प्रचार अभियान के अनुभवों को साझा करते हुए वे बताती हैं कि ``छात्रों से बात करने पर पता चलता है कि किस कद्र वे एनएसयूआई की कारगुजारियों से त्रस्त हो चुके हैं। छात्र कहते हैं कि वो बस एक दिन का एंटरटेनमेंट देते, जबकि हमें पूरे साल भुगतना पड़ता है। हमे चेंज चाहिए।´´
अनुप्रिया कहती हैं कि ``हम लिंग्दोह कमेटी का स्वागत करते हैं। हमने रिक्शे पर भी प्रचार किया है। छात्र भी प्रचार के दौरान हमें उत्सुकता से देख रहे थे। बकौल अनुप्रिया ग्लैमर में हम भी कम नहीं हैं, लेकिन अन्य संगठनों की तरह हम चकाचौंध दिखाकर छात्रों को गुमराह करने की बजाय मुद्दों के आधार पर छात्रों से उनका समर्थन मांग रहे हैं। रही बात धन और बल के प्रयोग की तो यह बात सभी जानते हैं कि इस तरह के हथकंडों का इस्तेमाल कौन लोग करते रहे हैं। हम तो आम छात्र की तरह ही अन्य छात्रों के पास जाते हैं। भगवान में आस्था रखने वाली अनुप्रिया भविष्य में पत्रकार बनने की इच्छा रखती हैं और अपने माता पिता को प्रेरणास्रोत मानती हैं।
2 comments:
prabhu paribaar baad se bachao.
DUSU Election mein Anupriya 10,000 voton se jeetegi, aisa mera purna vishwas hain.
Post a Comment