दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की ओर से सह सचिव पद के प्रत्याशी मुकेश शुक्ला एक जुझारू छात्र नेता रूप में जाने जाते है। वे गत कई वर्षों से विद्यार्थी परिषद से जुड़े हैं। स्वामी विवेकानंद और शिवाजी को अपना आदर्श मानते है। शहीद भगत सिंह कॉलेज छात्र संघ में केन्द्रीय पार्षद रहे मुकेश शुक्ला से डूसू चुनाव-प्रचार के दौरान संजीव कुमार सिन्हा ने अनेक मुद्दों पर बातचीत की। प्रस्तुत है मुख्य अंश-
•विद्यार्थी परिषद् के संपर्क में कैसे आए?
-मेरे पिताजी पिछले 32 साल से राष्ट्रवादी संगठनों से जुड़े है। इस कारण, बचपन से ही विद्यार्थी परिषद् के बारे में सुनता रहता था। मैं जब 11वीं कक्षा में था तभी विद्यार्थी परिषद् में सक्रियता से जुड़ा। उन दिनों साऊथ कैम्पस में परिषद की ओर से प्रवेश सूचना केन्द्र लगे थे, इसमें मैंने सक्रिय सहभागिता की।
•विद्यार्थी परिषद् ने आपको क्यों आकृष्ट किया?
-वास्तव में विद्यार्थी परिषद् एक रचनात्मक आंदोलन है। एक राष्ट्रवादी छात्र आंदोलन के नाते इसकी अपनी विशिष्ट पहचान है। विद्यार्थी परिषद् एक ऐसा संगठन है जो शैक्षिक समस्याओं से लेकर राष्ट्रीय समस्याओं तक सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों पर संघर्ष छेड़ती है। इसलिए ऐसे छात्र संगठन से जुड़ना गर्व की बात है।
एनएसयूआई केवल डूसू चुनाव के समय ही दिखती है जबकि हम 365 दिन कैम्पस में सक्रिय रहते है। प्रचार के दौरान विद्यार्थी परिषद् के पूरे पैनल को बड़ी संख्या में छात्रों का समर्थन मिल रहा है। हमें पूरा विश्वास है इस बार डूसू में परिषद् का परचम अवश्य लहराएगा।•दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव में विद्यार्थी परिषद् की ओर से आप सह सचिव के प्रत्याशी है। किन मुद्दों को लेकर आप छात्रों के बीच जा रहे है?
-दिल्ली विश्वविद्यालय देश का प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है। लेकिन यह दुर्भाग्य का विषय है कि वर्तमान में यहां अराजकता चरम पर है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। कक्षाओं में ब्लैकबोर्ड तक की बुरी हालत है। कई कॉलेजों में तो स्वच्छ पेयजल तक उपलब्ध नहीं है। अच्छे स्पोट्र्स ग्राऊंड नहीं है। विश्वविद्यालय परिसर में छात्राओं के साथ दुव्र्यवहार की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। इसके साथ ही मेट्रो रेल में छात्रों को रियायती पास मिले, सुरक्षित परिसर को लेकर ठोस योजनाएं बने आदि मुद्दों को लेकर हम छात्रों तक पहुंच रहे है। इसके अलावा राष्ट्रीय मुद्दों- संसद पर हमले के आरोपी अफजल को फांसी मिले और श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के साथ हो रहे भेदभाव, को भी हम मुद्दा बना रहे है।
•छात्र संघ चुनावों के संबंध में लिंग्दोह कमेटी के सिफारिश को आप किस रूप में देखते है?
-लिंग्दोह कमेटी की कई बातें रूढ़िवादिता से प्रेरित है। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ, जिससे 51 कॉलेज संबद्ध है और जो दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में फैला है, वहां तक पहुंच पाना, चुनाव-प्रचार करना यह कमेटी द्वारा तय पांच हजार रुपए में संभव होना मुश्किल दिख पड़ता है। इसके बावजूद भी हम लिंग्दोह कमेटी की सिफारिशों का उल्लंघन नहीं कर रहे है। लेकिन यथार्थ को ध्यान में रखकर कमिटी की सिफारिशें सामने आती तो छात्र आंदोलन के लिए बेहतर होता।
•डूसू चुनाव में ग्लैमर और धनबल का जोर रहता है। ऐसे में सही छात्र नेतृत्व उभरकर सामने नहीं आ पाता है। क्या यह उचित है?
-गत पांच सालों से डूसू पर एनएसयूआई काबिज है। इन्हें छात्र हितों से कोई लेना नहीं है। यह चिंता का विषय है कि राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का अगुवाई करनेवाला डूसू आज धनबल और बाहुबल के गिरफ्त में फंसा हुआ है। एनएसयूआई ने डूसू को मॉडलिंग एजेंसी बना दिया है। इन चुनौतियों के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी है। जहां तक विद्यार्थी परिषद् की बात है हम ग्लैमर और धनबल की राजनीति को नकारते है।
•चुनाव-प्रचार के दौरान कॉलेजों में छात्रों की ओर से आपको कैसा प्रतिसाद मिल रहा है?
-दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एनएसयूआई की कारस्तानियों से त्रस्त है। आम छात्रों के साथ-साथ उनके कैडर भी उनसे नाराज है। गत पांच वर्षों से डूसू पर काबिज होने के बाद भी छात्र हित में उन्होंने कोई कदम नहीं उठाए, केवल अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने में लगे रहे। एनएसयूआई को लेकर छात्रों में आक्रोश व्याप्त है। छात्र अपने को ठगा सा महसूस कर रहे है। हमें इसका फायदा मिल रहा है। एनएसयूआई केवल डूसू चुनाव के समय ही दिखती है जबकि हम 365 दिन कैम्पस में सक्रिय रहते है। प्रचार के दौरान विद्यार्थी परिषद् के पूरे पैनल को बड़ी संख्या में छात्रों का समर्थन मिल रहा है। हमें पूरा विश्वास है इस बार डूसू में परिषद् का परचम अवश्य लहराएगा।
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